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ग्रह गोचर में सूर्य ग्रहण को एक आश्चर्यजनक खगोलीय घटना मानी जाती है। सूर्य ग्रहण गोचर कि वह स्थिति है, जिसको कि हम लोग अपनी आँखों के माध्यम से प्रत्यक्ष देख सकते हैं। सूर्य ग्रहण की घटना से मानव जाति हमेशा ही प्रभावित होती रही है। यहाँ तक कि प्राचीन ग्रंथो वेदो, में और महाभारत काल में भी सूर्य ग्रहण के विषय में बातें आयी है। आज के समय में भी सूर्य ग्रहण प्रासंगिक है। पुराणों के अनुसार महाभारत काल में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था उस समय जयद्रथ वध का एक प्रसंग मिलता है। इस प्रसंग के अनुसार जयद्रथ वध करने के समय, दिन में ही सूर्य अस्तांचल की ओर चले गए तथा कुरुक्षेत्र की धरती में चारों तरफ अंधकार हो गया और कुछ समय बाद फिर सुर्य उदय हुआ, बाद में गणित शास्त्रों के माध्यम से पता लगा की वो घटना सूर्य ग्रहण की ही स्थिति के कारण हुई थी। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों के मध्य में अमृतपान के लिए युद्ध हुआ तो उस समय राहु नामक असुर ने छल से अमृत का पान किया, उसी समय सूर्य तथा चन्द्रमा देवताओं ने राहु दैत्य को पहचाना, इस कारण राहु क्रोधित हो गया, क्योंकि वह अमृत पी चुका था इसलिए वह अमर हो गया तो उसने सूर्य और चंद्रमा के ऊपर आक्रमण किया। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य के सिर को धड़ से अलग कर दिया उससे राहु और केतु ये 2 ग्रह उत्पन्न हुए और यही दोनों ग्रह सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का कारण हैं।
वैसे तो प्रत्येक अमावास्या को ग्रहण होता है परंतु गणित शास्त्र के अनुसार जब भी पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्र उपस्थित हो जाता है तथा चंद्रमा की जो छाया पृथ्वी के ऊपर पड़ती है उसी को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण की घटना संसार के लिए शुभ नहीं मानी जाती क्योंकि सूर्य आत्मा एवं जीवन के कारक हैं सभी प्राणी जीव जगत सूर्य से ही ऊर्जा लेते हैं। सूर्य को ग्रहण होने के समय जो छाया पृथ्वी के ऊपर आती है उस समय नकारात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है निश्चित रूप से ही जिसमें जिस समय जिस राशि पर या नक्षत्रों के ऊपर ग्रहण होता है वह उनके लिए शुभ नहीं होता हैं।
सूर्य ग्रहण के बहुत से प्रकार ज्योतिष शास्त्र में बताये गए है जिसमे खंडग्रास ग्रहण, खग्रास ग्रहण, कंकण ग्रहण, पूर्ण ग्रहण, आंशिक ग्रहण आदि कई प्रकार के भेद अवस्था अनुसार होते हैं। इसके अलावा ग्रहणों में ग्रहण का प्रारम्भ काल जब ग्रहण शुरू होता है। मध्य काल, ग्रहण के बीच का समय और ग्रहण मोक्ष, समाप्तिकाल के समय का महत्वा होता है। इसको पुण्यकाल भी कहते है ग्रहण के बारे में कहा जाता है ग्रहण की शुरुआत में स्नान करना चाहिए। सूर्य ग्रहण के मध्य काल में जप, हवन और देवताओं की पूजा करनी चाहिए तथा समाप्ति पर श्राद्ध, अन्न आदि का दान करने के बाद स्नान करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण के विषय में अन्य भी कई प्रकार की बातें शास्त्रों में बतायी गई है परंतु महत्वपूर्ण यही है की ग्रहण के कुछ समय पूर्व ही सूतक प्रारंभ हो जाता है। ग्रहण से शुरू होने से 12 घंटे पहले से सूतक प्रारंभ होता है। उस समय भोजन इत्यादि का परित्याग कर देना चाहिए। बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए गंगाजल, तुलसी इत्यादि मिलाकर ही भोजन देना चाहिए।
सूर्यग्रहण | तिथि |
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कंकड़ सूर्या | गुरुवार, 26 दिसंबर 2019 |
कंकड़ सूर्यग्रहण | रविवार, 21 जून, 2022 |
खग्रास, सूर्यग्रहण | सोमवार, 14 दिसंबर, 2022 |
खग्रास, सूर्यग्रहण | बुधवार, 26 मई 2022 |
कंकड़ सूर्यग्रहण | 10 जून 2022 गुरुवार |
खग्रास, सूर्यग्रहण | शनिवार, 04 दिसंबर, 2022 |