>

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) - Scorpio in Hindi

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) का स्थान राश‍ि चक्र और तारामंडल में आठवें स्थान पर है। यह राश‍ि उत्तर दिशा में वास करती है और इसे शीर्षोदयी राश‍ि भी कहा जाता है। तारामंडल में इस राश‍ि का प्रारंभ 211 डिग्री से लेकर 240 डिग्री के अंतर्गत आता है। वृश्च‍िक राश‍ि की आकृति की बात करें तो यह बिच्छू के आकार का माना गया है। वृश्च‍िक राश‍ि स्थ‍िर संज्ञक और सौम्य प्रकृति की जल तत्व कही गई है। वृश्च‍िक राश‍ि का स्वामी मंगल है और इसका वर्ण स्वर्ण रंगत का यानी पीला है। कालपुरुष के शरीर में वृश्च‍िक राश‍ि का स्थान लिंग प्रदेश कहा गया है। वृश्च‍िक राश‍ि का निवास स्थान पत्थर, जहर तथा कीड़े-मकौड़े के बिल माना गया है। वृश्च‍िक राश‍ि स्त्री लिंग दीर्घ और सौम्य राश‍ि है।

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) - होरा, द्रैष्काण, सप्तमांश

वृश्च‍िक राश‍ि की सभी राश‍ियों के समान दो होरा होती है। पहली होरा 15 अंश की और दूसरी होरा भी 15 अंश की है। पहली होरा के स्वामी चंद्रमा है और दूसरी होरा के स्वामी सूर्य हैं। इसी तरह वृश्च‍िक राश‍ि के तीन द्रैष्काण माने गए हैं। एक द्रैष्काण दस डिग्री का होता है। अत: कुल मिलाकर तीनों द्रैष्काण में तीस डिग्री की पूरी राश‍ि आ जाती है। वृश्च‍िक राश‍ि के प्रथम द्रैष्काण का स्वामी मंगल, दूसरे द्रैष्काण का स्वमाी बृहस्पति और तीसरे द्रैष्काण का स्वामी चंद्रमा है।

वृश्च‍िक राश‍ि (Scorpio) के 7 सप्तमांश होते हैं। पहला सप्तमांश का स्वामी शुक्र, दूसरे का बुध, तीसरे का चंद्र, चौथे का सूर्य, पांचवे का बुध, छठे का शुक्र, और सातवें का स्वामी मंगल माना गया है।

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) - नवमांश, दशमांश

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchak Rashi) के 9 नवमांश होते हैं। एक नवमांश 3 अंश और 20 विकला के हैं। वृश्च‍िक राश‍ि के पहले नवमांश का स्वामी चंद्र, दूसरे का सूर्य, तीसरे का बुध, चौथे का शुक्र, पांचवे का मंगल, छठे का बृहस्पति, सातवें का शन‍ि, आठवें का भी शन‍ि, नौवें का बृहस्पति स्वामी है। इसी कड़ी में वृश्च‍िक राश‍ि के 10 दशमांश होते हैं। सभी दशमांश 3 अंश के होते हैं। वृश्च‍िक राश‍ि के पहले दशमांश का स्वामी चंद्र, दूसरे का सूर्य, तीसरे का बुध, चौथे का शुक्र, पांचवे का मंगल, छठे का बृहस्पति, सातवें का शन‍ि, आठवें का भी शन‍ि, नौवें का बृहस्पति और दसवें का स्वामी मंगल होता है।

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) - द्वादशांश, षोडशांश

अब आते हैं वृश्च‍िक राश‍ि (Scorpio) के द्वादशांश की ओर। वृश्च‍िक राश‍ि के 12 द्वादशांश होते हैं। सभी द्वादशांश 2 अंश और 30 कला के माने गए हैं। वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchak Rashi) के पहले द्वादशांश का स्वामी मंगल, दूसरे का बृहस्पति, तीसरे का शन‍ि, चौथे का भी शन‍ि, पांचवे का बृहस्पति, छठे का मंगल, सातवें का शुक्र, आठवें का बुध, नौवें का चंद्र, दसवें का स्वामी सूर्य, ग्यारहवें का बुध, बारहवें का शुक्र स्वामी होता है। वृश्च‍िक राश‍ि के 16 षोडशांश होते हैं। एक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला के हैं। वृश्च‍िक राश‍ि के पहले षोडशांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शन‍ि, सातवें का भी शन‍ि, आठवें का बृहस्पति, नौवें का मंगल, दसवें का शुक्र, ग्यारहवें का बुध, बारहवें का चंद्रमा, तेरहवें का सूर्य, चौदहवें का बुध, पंद्रहवें का शुक्र और सोलहवें का स्वामी मंगल है।

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchik Rashi) - त्र‍िशांश, षष्टयंस, नक्षत्र

इसी क्रम में वृश्च‍िक राश‍ि के 5 त्रिशांश होते हैं। वृश्च‍िक राश‍ि (Scorpio) का पहला त्रिशांश 5 अंश का और इसका स्वामी शुक्र है। दूसरा त्रिशांश 7 अंश का और उसका स्वामी बुध है। तीसरा त्रिशांश 8 अंश का और इसका स्वामी बृहस्पति है। चौथा त्रिशांश 5 अंश का और इसके स्वामी शन‍ि हैं। पांचवा त्रिशांश 5 अंश का और इसके स्वामी मंगल हैं। इसी कड़ी में वृश्च‍िक राश‍ि के 60 षष्ट्यंस आते हैं। एक षष्ट्यंस 30 कला अर्थात आधा अंश का होता है। इनके स्वामी कुछ इस प्रकार हैं। पहला इन्दुरेखा, दूसरा भ्रमण, तीसरा सुधासयो, चौथा अतिश‍ित, पांचवा अशुभ, छठा शुभ, सातवां निर्मल, आठवां दंडायुत, नौवां कालाग्न‍ि, 1सवां प्रवीण, 11वां इन्दुमुख, 12वां दृष्टकाल, 13वां सुशीतल, 14वां मृदु, 15वां सौम्य, 16वां कालरूप, 17वां उत्पात, 18वां वन्शछय, 19वां मुख्या, 20वां कुलनाश, 21वां विश्दाग्ध, 22वां पूर्णचंद्र, 23वां अमृत, 24वां सुधा, 25वां कंटक, 26वां अधम, 27वां घोर, 28वां दावाग्न‍ि, 29वां काल, 30वां मृत्यु, 31वां मन्दात्मज, 32वां मलकर, 33वां क्ष‍ितिज, 34वां कल‍िनाश, 35वां आर्द्र, 36वां देव, 37वां दिगंबर, 38वां वागीश, 39वां विष्णु, 40वां पद, 41वां कोमल, 42वां मिर्दु, 43वां चंद्र, 44वां अमृत, 45वां सर्प, 46वां कला, 47वां इंद्र, 48वां वरुण, 49वां यम, 50वां माया, 51वां अग्न‍ि, 52वां गरल, 53वां कुलघ्न, 54वां भ्रष्ट, 55वां किन्नर, 57वां कुबेर, 58वां देव, 59वां राक्षस, 60वां घोर। ये सभी षष्ट्यंस अपने नाम के अनुसार वृश्च‍िक राश‍ि के जातकों को शुभ और अशुभ फल देते हैं।

वृश्च‍िक राश‍ि (Vrishchak Rashi) में सत्ताइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण विशाखा से ज्येष्ठा तक है जिसमें विशाखा नक्षत्र का एक चरण है जिसके वर्ण अक्षर हैं। विशाखा 1 तो, अनुराधा 1 ना, 2 नी, 3 नू, 4 ने, ज्येष्ठा 1 नो, 2 या, 3 यी, 4 यू और इन सभी को मिलाकर ये नौ चरण वृश्च‍िक राश‍ि के हैं। प्रत्येक चरण 3।20 डिग्री का होता है। सभी चरणों के नक्षत्र स्वामी भी मंगल के साथ अलग-अलग होते हैं। वृश्च‍िक राश‍ि दिन के समय सबसे अध‍िक ताकतवर होता है और इसल‍िए इस राश‍ि को दिनबली कहा जाता है।

यहां अन्य आर्टिकल्स पाएं: - Sawan 2025 Date इस दिन होंगे सावन व्रत 2025 तिथि और महत्व | Sawan ka Dusra Somwar | Kamika Ekadashi 2025 | Raksha Bandhan 2025 - कब है रक्षाबंधन पर्व का शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi 2025: कब है अजा एकादशी व्रत और शुभ मुहूर्त

 


Recently Added Articles
गणेश चतुर्थी 2025 के 10 दिनों में क्या करें
गणेश चतुर्थी 2025 के 10 दिनों में क्या करें

गणेश चतुर्थी कब है यह दिन भगवान गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व 10 दिन तक चलता है और गणेश चतुर्थी के 10 दिनों में क्या करें।...