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मेष राशि (Mesh Rashi) का स्वामी मंगल होने के कारण मेष राशि (Aries) वाले मनुष्य ऊर्जा से लिप्त होते हैं और किसी भी कार्य के प्रति इनकी स्फूर्ति देखने लायक होती है। मेष राशि (Mesh Rashi) के जातकों में एक और गुण जो विद्यमान है वो है इनका स्वाभिमानी होना। मेष राशि के लोग स्वतंत्र प्रकृति के होते हैं। इन्हें किसी के अधीन काम करना रास नहीं आता। परिवार के साथ इस राशि के जातकों का ज्यादा उठना-बोलना नहीं होता। मगर इसका ये मतलब नहीं कि ये अपने परिवार को साथ नहीं रखते। कम बोलचाल के साथ ही मेष राशि वाले अपने परिवार, सगे-संबंधियों से हमेशा एक प्रकार की दूरी के साथ स्थिर और आजीवन संपर्क बनाए रखते हैं। अग्नि तत्व होने के कारण भी इन्हें पेट संबंधित रोगों से जूझना पड़ता है। इसलिए ऐसे जातकों को तली-भुनी, मसालेदार खान पान से थोड़ा परहेज की आवश्यकता होती है। वहीं इनके गुस्से की वजह से भी दुर्घटनाओं की संभावना रहती है। आइए जानें तारामंडल में मेष राशि के ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति कैसी है।
राशियों में तारामंडल और राशि चक्र के अनुसार सभी राशियों का स्थान तय किया गया है। इनमें मेष राशि (Aries) तारामंडल और राशि चक्र में पहले स्थान पर स्थित है। यह पूर्वादयी राशि है। इसी शुरुआत शून्य डिग्री से 30 डिग्री के अंदर होती है। आकृति में मेष राशि को भेड़ की आकृति समान बताया गया है। यह उग्र संज्ञक अग्नितत्व और चर राशि मानी जाती है। मेष राशि का स्वामी मंगल और वर्ण लाल है। काल पुरुष के शरीर में मेष राशि को ललाट का स्थान दिया गया है। इसे धातु को डालने वाली जगह और रत्नों वाली भूमि भी कही गई है। मेष राशि जातक लिंग और सौम्य है।
सभी राशियों के दो होरा होती है। पहली होरा (Hora)15 अंश की और दूसरी होरा 15 अंश की। मेष राशि (Aries) की भी सभी राशियों के समान 2 होरा है जिसके 15-15 अंश हैं। पहले 15 अंश के स्वामी सूर्य और दूसरे 15 अंश के स्वामी चंद्रमा हैं। मेष राशि (Mesh Rashi) के तीन द्रैष्काण हैं। हर एक द्रैष्काण (Dreshkan)10 डिग्री की होती है। इस तरह तीनों द्रैष्काण 10-10 डिग्री की है जो कि कुल मिलाकर तीस डिग्री की पूरी राशि बनाती है। पहले द्रैष्काण के स्वामी मंगल, दूसरे के स्वामी सूर्य और तीसरे के स्वामी बृहस्पति हैं। मेष राशि के 7 सप्तमांश होते हैं। पहले सप्तमांश (Saptmansh) का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का स्वामी शुक्र माना गया है।
मेष राशि (Aries) के नवमांश की बात करे तो मेष राशि के 9 नवमांश होते हैं। एक नवमांश 3 अंश और 20 विकला का है। पहले नवमांश (Navmansh) का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल और नौवें का स्वामी बृहस्पति है। इसी तरह मेष राशि के 10 दशमांश होते हैं। सभी दशमांश 3 अंश का होता है। पहले दशमांश (Dashmansh) का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल, नौवें का बृहस्पति और दसवें का स्वामी शनि कहा जाता है।
मेष राशि (mesh rashi) के 12 द्वादशांश हैं। हर एक द्वादशांश 2 अंश और 30 कला के हैं। पहले द्वादशांश (Dwadshansh) का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल, नौवें का बृहस्पति, दसवें का स्वामी शनि, ग्यारहवें का शनि और बारहवें का स्वामी बृहस्पति होता है। इसी क्रम में मेष राशि के 16 षोडशांश होते हैं। एक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला का होता है। मेष राशि का पहला षोडशांश का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल, नौवें का बृहस्पति, दसवें का स्वामी शनि, ग्यारहवें का शनि, बारहवें का स्वामी बृहस्पति, तेरहवें का मंगल, चौदहवें का शुक्र, पंद्रहवें का बुध और सोलहवें का चंद्रमा स्वामी होता है।
मेष राशि (Aries) के 5 त्रिशांश होते हैं। पहला त्रिशांश (Trishansh) 5 अंश का है और इसके स्वामी मंगल हैं। दूसरा त्रिशांश 5 अंश और स्वामी शनि है। तीसरा त्रिशांश 8 अंश और स्वामी बृहस्पति, चौथा त्रिशांश 7 अंश और स्वामी बुध और पांचवा त्रिशांश 5 अंश और इसके स्वामी शुक्र हैं। त्रिशांश से आगे है षष्ट्यंस। मेष राशि के 60 षष्ट्यंस होते हैं। एक षष्ट्यंस 30 कला यानी आधा अंश का होता है। इनके स्वामी कुछ इस प्रकार हैं। पहले षष्ट्यंस का स्वामी घोर, दूसरे का राक्षस, तीसरे का देव, चौथे का कुबेर, पांचवे का यक्ष, छठे का किन्नर, 7वें का भ्रष्ट, 8वें का कुलघ्न, 9वें का गरल, 10वें का अग्नि, 11वें का माया, 12वें का यम, 13वें का वरुण, 14वें का इंद्र, 15वें का कला, 16वें का सर्प, 17वें का अमृत, 18वें का चंद्र, 19वें का मिर्दु, 20वें का कोमल, 21वें का पद, 22वें का विष्णु, 23वें वागीश, 24वें का दिगंबर, 25वें का देव, 26वें का आर्द्र, 27वें का कलिनाश, 28वें का क्षितिज, 29वें का मलकर, 30वें का मन्दात्मज, 31वें का मृत्यु, 32वें का काल, 33वें का दावाग्नि, 34वें का घोर, 35वें का अधम, 36वें का कंटक, 37वें का सुधा, 38वें का अमृत, 39वें का पूर्णचंद्र, 40वें का विश्दाग्ध, 41वें का कुलनाश, 42वें का मुख्या, 43वें का कन्शछय, 44वें का उत्पात, 45वें का कालरूप, 46वें का सौम्य, 47वें का मृदु, 48वें का सुशीतल, 49वें का दृष्टकाल, 50वें का इन्दुमुख, 51वें का प्रवीण, 52वें का सुधासयो, 53वें का भ्रमण, 60वें का इन्दुरेखा स्वामी है। सभी षष्ट्यंस अपने नाम के समान जातकों को शुभ और अशुभ फल देते हैं।
मेष राशि (Mesh rashi) सत्ताइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण पहले चरण है। इसमें अश्विनी नक्षत्र के चार चरण जिसके वर्ण अक्षर है अश्विनी 1 चु, 2 चे, 3 चो, 4 ल, भरणी 1 ली, 2 लू, 3 ले, 4 लो कृतिका 01, आ, कुल मिलाकर के ये नौ चरण मेष राशि के हैं। हर एक चरण 3।20 डिग्री का है और सभी चरणों के नक्षत्र स्वामी अलग-अलग होते हैं। मेष राशि रात के समय सबसे बलवान होती है। इसे रात्रिबली भी कहा जाता है।
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