>

यमुनोत्री धाम का इतिहास और मान्यता

यमुनोत्री धाम का इतिहास और मान्यता

युमना नदी का जल जगह पर प्रवाहित होता है लेकिन क्या आप जानतें वास्तव में इनका स्थान कहां यानि कि असल में मां युमना कहां निकल रही है। इनके अस्तिव के बारें में जानने के लिए आपको हमारा साथ देना होगा। चलिए आज हम इन्हीं के पवित्र धाम यमुनोत्री से जुड़े इतिहास को बतातें हुए पूरी जानकारी देंगे।

दरअसल यमुनोत्री धाम अपने आप में बड़ी मान्यता रखता है। जो चार धाम तीर्थ यात्रा का एक हिस्सा है। यहीं से चार धाम की यात्रा की शुरूआत होती है। आपको बता दें कि यमुना नदीं का स्त्रोत उत्तरकाशी में गढ़वाल में स्थित है और यह गढ़वाल हिमालय में 3,293 मीटर की ऊचांई पर स्थित है।

यमुनोत्री मंदिर का इतिहास

मां यमनोत्री के मंदिर का इतिहास बताने से पहले हम आपको बता दें कि यमनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के समुंद्र तल से काफी ऊचाई पर मौजूद है। बता दें यह लगभग 3235 मीटर की ऊचांई पर स्थित है। शुरूआत में मंदिर को तीहरी नरेश ने 1839 में बनवाया था लेकिन दुर्भाग्यवश यमुनोत्री के बाढ़ की चपेत में आ गया था।  जिसके बाद मंदिर का निर्माण पूर्ण रूप से 19 वी शताब्दी में जयपुर के महारानी गुलारिया  और टिहरी गढ़वाल के राजा प्रतापगढ़ ने अपनी पूरा निष्ठा और भक्ति के साथ पूरा कराया।

यमुनोत्री धाम की यात्रा का महत्व

किसी भी यात्रा के पीछे कई सारे कारण और कथाएं छिपी होती हैं। ऐसे ही मां यमनोत्री के धाम की यात्रा का महत्व है। जिसके अनुसार कहा जाता है कि सूर्य देव की पुत्री युमना और पुत्र यमराज है। जब मां युमना नदी के रूप में पृथ्वी पर बहने लगी तो उनके भाई यमराज को मृत्यु लोक दिया गया। मां यमुना ने भाई दूज का त्योहार मनाया और यमराज ने मां गंगा से वरदान मांगने के लिए बोला। यमराज ने बहन यमुना की बात को सुनकर वरदान दिया कि जो भी तेरे पवित्र जल में स्नान करेगा। वो यमलोक का रास्ता कभी नहीं देखेगा। इसलिए कहा जाता है कि जो भी मनुष्य यमुगा के पवित्र जल में स्नान करता है तो वह अकाल मृत्यु के भय से दूर हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त होता है। इसलिए यहां हजारों से भी ज्यादा की संख्या में भक्त आत है।

यमुनोत्री के कपाट खुलने का समय

पहाड़ों में बसी यमुनोत्री मंदिर में आने और जाने का समय निर्धारित है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई किसी भी समय आ जा सकता है। इसलिए मंदिर के कपाट खुलने का समय तय है बता दें कि मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते हैं यानी कि अप्रैल –मई के महीने में कपाट खुल जाते हैं। यात्रा शुरू हो जाती है। अक्टूबर और नवंबर में मंदिर के कपाट बंद कर दिया जाते हैं।

यमुनोत्री धाम की यात्रा की शुरूआत

जहां तक बात यात्रा की शुरुआत की है। बता दें कि यात्रा की शुरूआत सबसे पहले पांडवों ने की। पांडव उत्तराखंड को तीर्थ यात्रा पर आए थे तो भी पहले यमुनोत्री आए उसके बाद उन्होंने गंगोत्री और फिर केदारनाथ और बद्रीनाथ की ओर बढ़े। तभी से चार धाम की यात्रा की शुरूआत हुई।  तभी से ही यहां पर लाखों भक्तों का ताता लगा रहता है और सब अपनी मनोकामना को पूर्ण कराने के लिए यमुनोत्री से यात्रा की शुरूआत करते हुए चार धाम की पूरी यात्रा करते हैं।

मनुष्य अपने जीवन में अनेको पाप करता है। जिनका उद्धार यमुनोत्री के जल में स्नान करने से हो जाता है। पाप से मुक्ति पाने के लिए हर साल यहां भक्त आते हैं। कलियुग में किये पाप से मुक्ति पा लेते हैं।

यहां अन्य आर्टिकल्स पाएं: - Sawan 2025 Date इस दिन होंगे सावन व्रत 2025 तिथि और महत्व | Sawan ka Dusra Somwar | Kamika Ekadashi 2025 | Raksha Bandhan 2025 - कब है रक्षाबंधन पर्व का शुभ मुहूर्त | Aja Ekadashi 2025: कब है अजा एकादशी व्रत और शुभ मुहूर्त

 


Recently Added Articles
गणेश चतुर्थी 2025 के 10 दिनों में क्या करें
गणेश चतुर्थी 2025 के 10 दिनों में क्या करें

गणेश चतुर्थी कब है यह दिन भगवान गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व 10 दिन तक चलता है और गणेश चतुर्थी के 10 दिनों में क्या करें।...