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संतोषी माता व्रत विधि

संतोषी माता - Santoshi Mata Vrat Vidhi

यह तो आपको भी पता है ही कि हिन्दू धर्म में लोग कई दिन अलग-अलग देवी देवताओं के नाम व्रत रखते है ताकि सुख शांति बनी रहे। इसी तरह हिन्दू धर्म के अनुसार शुक्रवार के दिन व्रत रखना भी बहुत अच्छा माना जाता है। और जो लोग इस दिन व्रत करते है उन्हें बहुत फायदा भी होता है। इसके अलावा आपको बता दें कि इस दिन संतोषी माता का व्रत किया जाता है। जबकि लोग शुक्र ग्रह की भी पूजा अर्चना करते हैं।

ये है शुक्रवार का व्रत रखने के फायदे

इसी बीच अब हम जानेंगे कि आखिर शुक्रवार के दिन व्रत रखने से लोगों को क्या-क्या फायदे होते है। तो ज्योतिषों का यही मानना है कि इस दिन व्रत करने से भक्त जन को को कला के क्षेत्र में विशेष लाभ मिलता है। इसके अलावा वैवाहिक जीवन में भी सुख मिलता है। जिस दिन यह व्रत होता है उस दिन खटाई बिलकुल नहीं खानी चाहिए।

यह है शुक्रवार व्रत की विधि

जैसा कि आप ऊपर देख चुके है कि शुक्रवार के दिन व्रत करने से बहुत फायदे होते है और बहुत सारे लोग करते है। तो अब हम इसकी विधि भी जान लेते है कि कैसे व्रत करा जाना चाहिए। बता दें कि शुक्रवार का व्रत शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से शुरू करना बहुत लाभदायक माना जाता है। जितना हो सके उतना इस दिन व्रत रखने वाले लोगों को सफ़ेद रंग के कपडे पहनने चाहिए। लोगों को इस दिन पूरी विधि विधान के साथ शुक्र ग्रह और लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के बाद खीर चढ़ानी चाहिए।

यह है संतोषी माता के व्रत की विधि

अब बात करते है संतोषी माता के व्रत की विधि की, तो संतोषी माता की पूजा करने वालों को कई बातों का पूरा ध्यान रखना चाहिए जैसे उस दिन खटाई बिलकुल नहीं खाना, किसी को झूठ न बोलना और कोई भी बुरा या गलत काम नहीं करना चाहिए। शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की अच्छे से सफाई करनी चाहिए और इसके बाद संतोषी माता की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद उनके सामने घी का दीपक जलाना चाहिए।

इसके बाद माता संतोषी चने और गुड़ का भोग लगाना चाहिए। फिर यही प्रसाद लोगों में बांटना बहुत लाभदायक माना जाता है।

तो हम उम्मीद करते है कि आपको शुक्रवार अर्थात संतोषी माता के व्रत के बारे में यहाँ इस आर्टिकल की मदद से पूरी जानकारी मिल ही गयी होगी। अगर कुछ सवाल या संदेह है तो नीचे कमेंट में जाकर पूछ सकते है।

सन्तोषी माता की आरती
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।

अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ॥

॥ जय संतोषी माता...॥

सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।

हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो॥

॥ जय संतोषी माता...॥

गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।

मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे॥

॥ जय संतोषी माता...॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।

धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे॥

॥ जय संतोषी माता...॥

गुड़ अरु चना परम प्रिय तामें संतोष कियो।

संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो॥

॥ जय संतोषी माता...॥

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।

भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही॥

॥ जय संतोषी माता...॥

मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।

विनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई॥

॥ जय संतोषी माता...॥

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।

जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै॥

॥ जय सन्तोषी माता...॥

दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।

बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥

॥ जय संतोषी माता...॥

ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।

पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो॥

॥ जय संतोषी माता...॥

चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।

संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे॥

॥ जय संतोषी माता...॥

संतोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।

रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति, जी भर के पावे॥

॥ जय सन्तोषी माता...॥

जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।

अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता॥


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