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Varuthani Ekadashi 2026: वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को सबसे शुभ और फलदाई माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, वरुथिनी एकादशी व्रत करने व्यक्ति के सारे पापों का नाश होता है अथवा उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी व्रत का पालन पूरे मन एवं श्रद्धा से करता है उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। पूरे विधि-विधान से वरुथिनी एकादशी करने वाले व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं अथवा उसके कष्टों का भी निवारण होता है। वरुथिनी एकादशी के दिन हम भगवान विष्णु के वामन अवतार की आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है उसे अनेक बुराइयों के खिलाफ सुरक्षा मिलती है।
वरुथिनी एकादशी: मंगलवार, 13 अप्रैल 2026 से लेकर 14 अप्रैल को व्रत तोड़ने (पारण) का समय - सुबह 05:54 से 08:29 बजे तक पारण तिथि पर द्वादशी का समापन - उस दिन, शाम 05:46 बजे एकादशी तिथि की शुरुआत - 13 अप्रैल 2026, रात 01:15 बजे एकादशी तिथि का समापन - 14 अप्रैल 2026, रात 01:08 बजे
इस पावन दिन पर कई भक्त अपनी free online janam kundli in hindi reading करवाकर अपने जीवन के शुभ समय और ग्रहों की स्थिति को समझते हैं।
हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है। जिसमें वरुथिनी एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इस दिन हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। वरुथिनी एकादशी करने सेे बुरे भाग्य में बदलाव आता है तथा यह व्रत करने वाले व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है एवं अनेकों कष्टों से छुटकारा मिलता है। जो भी व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत पूरे मन से एवं श्रद्धापूर्वक करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कई लोग इस विशेष तिथि पर Jyotish in Hindi के अनुसार शुभ योग और ग्रहों की कृपा का निर्धारण भी करते हैं।
प्राचीन काल में मांधाता नामक एक राजा नर्मदा नदी के तट पर राज करता था। वह अत्यंत दानी व तपस्वी था। राजा हमेशा धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ में लीन रहता था। एक बार जब राजा वन में तपस्या में लीन था तभी न जाने किस ओर से एक जंगली भालू आया और राजा के पैर को चबाने लगा। राजा तनिक भी नहीं घबराया और अपनी तपस्या में लीन रहा परंतु भालू राजा के पैर को चबाते हुए घसीटकर ले जाने लगा। तब राजा ने तपस्या धर्म का पालन करते हुए बिना क्रोध किए अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और अपने चक्र से भालू का वध करके राजा को बचाया।
राजा के पैर को भालू पहले ही खा चुका था और यह देखकर उसे अत्यंत पीड़ा हुई। राजा अपने पैर की हालत देखकर अत्यंत दुखी हो गया। अपने दुखी भक्त को देखकर भगवान विष्णु बोले ' हे वत्स! तुम शोक ना करो, तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। व्रत के प्रभाव से तुम फिर से संपूर्ण अंगों वाले हो जाओगे। भालू के द्वारा तुम्हारे पैर का नष्ट हो जाना तुम्हारे पूर्व जन्म के दुष्कर्म की सजा थी।' भगवान विष्णु की आज्ञा तुरंत मानकर राजा मांधाता ने मथुरा जाकर पूरे श्रद्धा और लगन से वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुनः संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी प्रकार कठिन परिस्थितियों में लोग सही दिशा के लिए ज्योतिष परामर्श लेना भी महत्वपूर्ण मानते हैं।
• दशमी के दिन यानी एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण ना करें।
• वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले एवं स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें।
• इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान करवाएं एवं उन्हें साफ-सुथरे स्वच्छ वस्त्र पहनाएं। प्रतिमा को रखने वाली चौकी को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें।
• इसके बाद भगवान विष्णु की अक्षत, दीपक आदि सोलह सामग्री से पूजा करें।
• भगवान विष्णु को गंध, पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
• व्रत के दिन भगवान विष्णु को भोग अवश्य लगाएं।
• रात के समय भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
• अगले दिन सुबह स्नान करके पूजा करें और यदि संभव हो तो किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं।
धार्मिक अवसरों पर कई परिवार विवाह संबंधी शुभ समय देखने के लिए कुंडली मिलान भी अवश्य करते हैं।
वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन ध्यान रखने वाली बातें।
• हिंदू मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है इसलिए वरुथिनी एकादशी के दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना शुभ माना गया है।
• वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीला फल, पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना गया है।
• एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि एवं धन का आगमन होता है।
इस पवित्र दिन बहुत से लोग शुभ भाग्य बढ़ाने के लिए उपयुक्त रत्न धारण करने के बारे में भी सोचते हैं।
प्रश्न.वरुथिनी एकादशी 2026 कौन सी तिथि होगी?
उत्तर। वरुथिनी एकादशी 13 अप्रैल 2026, सोमवार को मनाई जाएगी।
प्रश्न वरुथिनी एकादशी की अवधि कब शुरू और समाप्त होती है?
उत्तर। प्रारंभ: 13 अप्रैल 2026, प्रातः 01:17 बजे
समाप्त: 14 अप्रैल 2026, प्रातः 01:09 बजे
प्रश्न वरुथिनी एकादशी का व्रत पारण कब और कैसे करना चाहिए?
उत्तर। पारण का शुभ समय 14 अप्रैल 2026 को 05:45 बजे से 08:20 बजे तक है
हरि वासर समाप्त करने और द्वादशी तिथि में पारण करें। पारण के पहले भगवान विष्णु की पूजा, गरीबों का दान, और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करें।
प्रश्न वरुथिनी एकादशी का महत्व क्या है?
उत्तर। यह एकादशी वैशाख मास का कृष्ण पक्ष में पड़ती है और भगवान विष्णु के
वाराह अवतार की वंदना के लिए प्रतिबद्ध है।
इसे करने से पापों का नाश होता है, सौभाग्य प्राप्त होता है, और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि यह व्रत 10,000 वर्षों तक की तपस्या का फल देता है और कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय स्वर्ण दान की तरह पुण्य प्रदान करता है।
प्रश्न वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि क्या है?
उत्तर। सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करना और स्वच्छ वस्त्र धारण करना।
भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थल पर कहीं स्थापित करें।
पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक, पीले फूल, पीले वस्त्र, और तुलसी दल की अर्पण करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
रुथिनी एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें, और आरती करें।
भोग में तुलसी दला जोड़ें और अंत में क्षमा प्रार्थना करें।