>
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ को सबसे ऊपर माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में भगवान की पूजा करना ही सर्वोंपरि है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म में हर महीने में कोई ना कोई त्यौहार जरूर आता है। ऐसे ही विशेष दिन और त्यौहार पूर्णिमा और अमावस्या है। हर महीने आने वाले त्यौहार पूर्णिमा और अमावस्या का विशेष महत्व माना जाता है। अमावस्य को कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन होता है तो पूर्णिमा को शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन होता है। दरअसल, जिस दिन चांद का आकार पूरा होता है उस दिन को पूर्णिमा कहते हैं और पूर्णिमा के दिन व्रत भी रखा जाता है। साथ ही जिस दिन आसमान में चंद्रमा नहीं दिखाई देता उस दिन को अमावस्य कहते हैं। पूर्णिमा और अमावस्या को एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है। दोनों ही दिन बड़ा ही महत्व रखते हैं क्योंकि इन दिनों में व्रत, पूजन और श्रृद्धा भक्ति की जाती है। चलिए तो आज हम आपको एक ऐसी पूर्णिमा के बारे बताएंगे जो बड़ी ही विशेष है। इस साल पौष पूर्णिमा 03 जनवरी 2026 को है। पौष पूर्णिमा माघ मास से पहले आती है और माघ मास में भगवान का विशेष प्रकार से पूजन किया जाता है।
पौष पूर्णिमा को बड़ा ही खास माना जाता है क्योंकि इस पूर्णिमा के बाद माघ मास की शुरुआत होती है। जिसमें स्नान करने का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि जो भी मनुष्य विधिपूर्वक हर रोज सुबह स्नान करता है, मोक्ष को प्राप्त होता है। माघ मास में स्नान कर मंदिर जाना और फिर हवन आदि करके पूजन करने से जन्म जन्मांतर के बंधनों से छूट मिल जाती है। इस पूर्णिमा में गंगा स्नान करने से मनुष्य भगवान के चरणों में अर्पित हो जाता है। पौष पूर्णिमा को सूर्य देव का महीना माना जाता है। इस अवधि में सूर्य देव की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा को शांकभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म को मानने वाले लोग पुष्पाभिषेक यात्रा की शुरुआत इसी दिन से करते हैं।
पौष पूर्णिमा के दिन सुबह उठकर 4 बजे ही स्नान करके, मंदिर जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव को केले चढ़ाने से विशेष फल मिलता है। पौष पूर्णिमा के दिन शिव के साथ कृष्ण भगवान का भी पूजन करना चाहिए। कृष्ण चालिसा का पाठ करके आरती कर गाय को भोजन खिलाना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत करने की भी परंपरा है।
पौष पूर्णिमा को और खास बनाने के लिये परामर्श करे इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
इस साल पौष पूर्णिमा की तिथि जनवरी 02, 2026 ,18:54 बजे से आरंभ होगी और पूर्णिमा की तिथि जनवरी 03, 2026, 15:33 बजे समाप्त हो जाएगी।
पौष पूर्णिमा पर श्री कृष्ण भगवान का पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि यह पूर्णिमा मोक्ष दायिनी पूर्णिमा है जिसमें प्रातः काल स्नान कर भगवान का विशेष प्रकार से पूजन करना चाहिए। भगवान को तुलसी का भोग लगाने से और दूध, फल, आदि चढ़ाने से हर इच्छा की पूर्ति होती है।
पौष पूर्णिमा व्रत मुहूर्त - जनवरी 03, 2026
पूर्णिमा आरम्भ - जनवरी 02, 2026 ,18:54 बजे से
पूर्णिमा समाप्त - जनवरी 03, 2026, 15:33 बजे
पौष पूर्णिमा के दिन जल्दी उठकर जातक को सबसे पहले प्रातः काल स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। किसी नदी या कुंड में स्नान करना सबसे पवित्र माना जाता है। स्नान से पूर्व वरुण देव को निश्चित रूप से प्रणाम करना चाहिए। स्नान के पश्चात भगवान सूर्य के मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ देना काफी लाभदायक बताया गया है। साथ-साथ जातक को पौष पूर्णिमा के दिन मन्त्रों से तप करना चाहिए। भगवान की पूजा केवल आरती से नहीं बल्कि मंत्रों के सही उच्चारण से करनी चाहिए। किसी जरूर मत जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान दक्षिणा देने से भी जातक के बड़े से बड़े पाप कट जाते हैं, दान में इस दिन तिल, गुड़, कंबल और वस्त्र दिए जा सकते हैं।
पौष पूर्णिमा सनातन धर्म में बहुत विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्य है। यह दिन सूर्य और चंद्रमा के अद्भुत संयोग का प्रतीक है, क्योंकि पौष माह सूर्य देव को समर्पित है और पूर्णिमा चंद्रमा की तिथि है। इस दिन का प्रमुख महत्त्य निम्नलिखित हैं:_
हिंदू महत्व: इस दिन गंगा स्नान, सूर्य और चंद्रमा की वंदना, और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की आराधना से धन-समृद्धि, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शाकंभरी जयंती: पौष पूर्णिमा को माता शाकंभरी की जयंती के रूप में भी मनाया जाने लगता है, जो प्रकृति और पोषण की देवी हैं। सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में माता शाकंभरी का प्राचीन शक्तिपीठ विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
महाकुंभ की शुरुआत: पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ का स्नान शुरू हो सकता है, जो इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
कृषि और सांस्कृतिक महत्व: छत्तीसगढ़ में जनजातीय समुदाय इस दिन छेरता पर्व मनाते हैं, जिसमें नए चावल, गुड़ और तिल के व्यंजन बनाए जाते हैं।
संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लें।
स्नान: पवित्र नदी (गंगा, यमुना आदि) में स्नान करें। यदि संभव न हो, तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और वरुण देव का प्रणाम करें।
सूर्य पूजा: जल अर्घ्य के समय सूर्य मंत्र (ॐ सूर्याय नमः) का जाप करते हुए सूर्य देव को जल अर्घ्य दें।
विष्णु-लक्ष्मी पूजा: एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाएं। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। फूल, हल्दी, अक्षत, तुलसी, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। विष्णु चालीसा और लक्ष्मी आरती का पाठ करें।
चंद्र पूजा: चंद्रोदय (शाम 5:15 बजे) के बाद चंद्रमा को दूध और जल का अर्घ्य दें।
दान-पुण्य: तिल, गुड़, गर्मि पहनने के कपड़े, गेहूं, चावल, दूध-दही आदि दान करें। गाय को भोजन कराना और पीपल की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है।
सत्यनारायण कथा: सत्यनारायण भगवान की कथा सुनें और प्रसाद बांटनें।