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विवाह की तारीख तय करते समय विवाह मुहूर्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विवाह को लेकर हिन्दू शास्त्रों में विशेष रूप से व्यवस्था की गयी है। विवाह दो लोगों के बीच में आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक रूप से विशेष महत्व रखता है। विशेष रूप से हिंदू विवाह में यह बात बताई जाती है कि यह एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्मों का रिश्ता होता है। यह माना जाता है कि अशुभ विवाह मुहूर्त (Vivah Muhurat )पर किए गए विवाह अक्सर जोड़े पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वैसे भी अगर कोई शुभ कार्य गलत समय में किया जाए तो इससे जातक और जो भी लोग इस कार्य से जुड़े होते हैं उनको बाद में हानि उठानी पड़ सकती है। हिंदू विवाह परम अनंत काल के लिए दो व्यक्तियों का सामंजस्य करता है, ताकि वे धर्म (सत्य), अर्थ और काम (भौतिक इच्छाओं) को सही सामंजस्य के साथ पूर्ण कर सकें। विवाह जीवनसाथी के रूप में दो व्यक्तियों का मिलन होता है और यह जीवन की निरंतरता से पहचाना जाता है। हिंदू धर्म में, शादी के बाद पारंपरिक रिवाजों का सेवन किया जाता है। वास्तव में, विवाह को पूर्णता तक पूर्ण या वैध नहीं माना जाता है। इसमें दो परिवार भी शामिल होते हैं। इस अवसर के लिए अनुकूल रंग सामान्य रूप से लाल और सुनहरे होते हैं।
विवाह मुहूर्त या विवाह का शुभ दिन निकालने के लिए मुख्य रूप से तीन चरणों में कार्य किया जाता हैं। विवाह मुहूर्त के लिए सबसे पहले वर और कन्या की पत्रिकाओं का मिलान किया जाता है। यदि पत्रिका में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कम से कम 18 गुण मिल जाते हैं, तो वह पत्रिका विवाह के योग्य मानी जाती हैं।
कुंडली मिलान के उपरान्त दूसरे चरण में विवाह के लिए उत्तम दिन व तिथि को देखा जाता हैं। विवाह के लिए उत्तम दिन जानने के लिए पंचांग की सहायता ली जाती है, पंचांग में , ऐसे दिनों को चुनते हैं, जो सभी प्रकार से शुद्ध होते हैं। चुने गए दिन पूर्ण रूप से शुद्ध होने आवश्यक होते हैं क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बताये गए 24 प्रकार के दोषो से मुक्त दिन को ही शुद्ध व विवाह के लिए शुभ माना जाता हैं।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है ग्रहो की स्तिथि को जानना। वैदिक ज्योतिष के अनुसार वर और कन्या की पत्रिका का अध्यन करते समय यह देखना बहुत महत्वपूर्ण होता है की जिस दिन के लिए हम वर और कन्या का विवाह देख रहे हैं, उस दिन वर और कन्या की पत्रिका में स्तिथ तीन ग्रह चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति की स्तिथि अच्छी होनी चाहिए जिसे त्रिबल शुद्धि कहा जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं की वर और कन्या की राशि अनुसार चुना गया विवाह के दिन ग्रहो की स्तिथि, वर और कन्या की राशि से चौथे स्थान, आठवें स्थान या फिर बारहवें स्थान पर नहीं होनी चाहिए।
एस्ट्रोस्वामीजी आपके लिए साल 2020 में सभी शादी के मुहूर्त लेकर आया है। आप यदि कन्या और वर की कुंडली मिलान करके शादी का मुहूर्त और समय जानना चाहता है या जातकों की कुंडली मिलान की सहायता से गुण का अध्ययन करना चाहते हैं तो आपको तुरंत एस्ट्रोस्वामीजी से संपर्क करना चाहिए।
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
15 जनवरी |
बुध |
माघ कृ। पंचमी |
उ.फाल्गुन |
16 जनवरी |
गुरु |
माघ कृ। षष्ठी |
हस्त चित्रा |
17 जनवरी |
शुक्र |
माघ कृ। सप्तमी |
चित्रा स्वाति |
18 जनवरी |
शनि |
शनि माघ कृ। नवमी |
स्वाति |
19 जनवरी |
रवि |
रवि माघ कृ। दशमी |
अनुराधा |
20 जनवरी |
सोम |
सोम माघ कृ। एकादशी |
अनुराधा |
26 जनवरी |
रवि |
माघ शु। द्वितीया |
धनिष्ठा |
29 जनवरी |
बुध |
माघ शु। चतुर्थी |
उ.भाद्रपद |
30 जनवरी |
गुरु |
माघ शु। पंचमी |
उ.भाद्रपद रेवती |
31 जनवरी |
शुक्र |
माघ शु। षष्ठी |
रेवती अश्विनी |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
1 फरवरी |
शनि |
माघ शु। सप्तमी |
अश्विनी |
3 फरवरी |
सोम |
माघ शु। नवमी |
रोहिणी |
4 फरवरी |
मंगल |
माघ शु। दशमी |
रोहिणी |
9 फरवरी |
रवि |
माघ पूर्णिमा |
मघा |
10 फरवरी |
सोम |
फाल्गुन कृ। प्रतिपदा |
मघा |
11 फरवरी |
मंगल |
फाल्गुन कृ। तृतीया |
उ.फाल्गुन |
14 फरवरी |
शुक्र |
फाल्गुन कृ। षष्ठी |
स्वाति |
15 फरवरी |
शनि |
फाल्गुन कृ। सप्तमी |
अनुराधा |
16 फरवरी |
रवि |
फाल्गुन कृ। अष्टमी |
अनुराधा |
25 फरवरी |
मंगल |
फाल्गुन शु। द्वितीया |
उ.भाद्रपद |
26 फरवरी |
बुध |
फाल्गुन शु। तृतीया |
फाल्गुन शु। तृतीया |
27 फरवरी |
गुरु |
फाल्गुन शु। चतुर्थी |
रेवती |
28 फरवरी |
शुक्र |
फाल्गुन शु। पंचमी |
अश्विनी |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
10 मार्च |
मंगल |
चैत्र कृ। प्रतिपदा |
हस्त |
11 मार्च |
बुध |
चैत्र कृ। द्वितीया |
हस्त |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
16 अप्रैल |
गुरु |
वैशाख कृ। नवमी |
धनिष्ठा |
17 अप्रैल |
शुक्र |
वैशाख कृ। दशमी |
उ.भाद्रपद |
25 अप्रैल |
शनि |
वैशाख शु। द्वितीया |
रोहिणी |
26 अप्रैल |
रवि |
वैशाख शु। तृतीया |
रोहिणी |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
1 मई |
शुक्र |
वैशाख शु। अष्टमी |
मघा |
2 मई |
शनि |
वैशाख शु। नवमी |
मघा |
4 मई |
सोम |
वैशाख शु। एकादशी |
उ.फाल्गुनी हस्त |
5 मई |
मंगल |
वैशाख शु। त्रयोदशी |
हस्त |
6 मई |
बुध |
वैशाख शु। चतुर्दशी |
चित्रा |
15 मई |
शुक्र |
ज्येष्ठ कृ। अष्टमी |
धनिष्ठा |
17 मई |
रवि |
ज्येष्ठ कृ। दशमी |
उ.भाद्रपद |
18 मई |
सोम |
ज्येष्ठ कृ। एकादशी |
उ.भाद्रपद रेवती |
19 मई |
मंगल |
ज्येष्ठ कृ। द्वादशी |
रेवती |
23 मई |
शनि |
ज्येष्ठ शु। प्रतिपदा |
रोहिणी |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
11 जून |
गुरु |
आषाढ़ कृ। षष्ठी |
धनिष्ठा |
15 जून |
सोम |
आषाढ़ कृ। दशमी |
रेवती |
17 जून |
बुध |
आषाढ़ कृ। एकादशी |
अश्विनी |
27 जून |
शनि |
आषाढ़ शु। सप्तमी |
उ.फाल्गुनी |
29 जून |
सोम |
आषाढ़ शु। नवमी |
चित्रा |
30 जून |
मंगल |
आषाढ़ शु। दशमी |
चित्रा |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
27 नवंबर |
शुक्र | कार्तिक शु। द्वादशी | अश्विनी |
29 नवंबर | रवि | कार्तिक शु। चतुर्दशी | रोहिणी |
30 नवंबर | सोम | कार्तिक पूर्णिमा | रोहिणी |
तारीख | दिन | तिथि | नक्षत्र |
1 दिसंबर |
मंगल |
मार्गशीर्ष कृ। प्रतिपदा |
रोहिणी |
7 दिसंबर |
सोम |
मार्गशीर्ष कृ। सप्तमी |
मघा |
9 दिसंबर |
बुध |
मार्गशीर्ष कृ। नवमी |
हस्त |
10 दिसंबर |
गुरु |
मार्गशीर्ष कृ। दशमी |
चित्रा |
11 दिसंबर |
शुक्र |
मार्गशीर्ष कृ। एकादशी |
चित्रा |
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