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स्कंदमाता

स्कंदमाता की पूजा

नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ दुर्गा की पूजा का प्रारंभ होता है। इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती है। वह बिना संतान की मांग करने वाली नारियों के लिए विशेष रूप से पूजा जाती है। स्कंदमाता को अपने भक्तों के प्रति त्वरित प्रसन्न होने की खासियत है। माँ की सुंदरता अनूठी है।

हिंदू धर्म के अनुसार, स्कंदमाता हिमालय की बेटी, पार्वती हैं, जिन्हें उनके भक्त भी महेश्वरी और गौरी के रूप में पूजते हैं। मां की पूजा से भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है और वह उनकी सभी दुःखों को हरती है और उन्हें सुख प्रदान करती है।

इसके अतिरिक्त, स्कंदमाता को 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाना जाता है। वह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। वे पुराणों में शक्ति और कुमार के रूप में जाने जाते हैं। इस रूप में माँ दुर्गा को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

स्कंदमाता की पूजा का तरीका:

पूजा शुरू करने से पहले, मां को कुश (घास) या चादर की पवित्र सीट पर रखें।

माँ स्कंदमाता को जल, फूल और फलों के साथ उपासना करें और मंत्र का पाठ करें।

कुछ भक्त इस दिन उध्यान ललिता के उपवास को भी रखते हैं, जो फलदायक होता है।

स्कंदमाता का मंत्र:

"सेन्थन गता नित्य पद्म श्री ताकर्ध्या सिंहासंगता नित्य पदस्क्षितकर्दव्या, शुभदस्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।"

वस्त्र और प्रसाद:

माँ स्कंदमाता की पूजा के लिए सफेद कपड़े का इस्तेमाल करें। माँ को बनानों का भोजन प्रस्तुत करने से आपके स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा।

ध्यान:

माँ स्कंदमाता की दिव्य रूप के लिए ध्यान के लिए उपलब्ध ध्यान श्लोकों को पढ़ें।

स्त्रोत मंत्र:

माँ स्कंदमाता की प्रशंसा और उनकी आशीर्वाद के लिए ये ध्यान श्लोकों का पाठ करें।

कवच (आर्मर):

स्कंदमाता से संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आर्मर वाक्यों का पाठ करें।

इन पूजा विधियों का अनुसरण करने और मंत्रों का जप करने से आपको माँ स्कंदमाता से आशीर्वाद और आकांक्षित परिणाम मिलेगा।


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