आओ चले केदारनाथ....तबाही के बाद भी विश्वास का प्रतीक का धाम है केदारनाथ
आपको याद होगा वह पल जब प्रकृति का तांडव देखकर हर कोई हैरान था। जो प्रकृति का वह भयानक रूप था। जिसे देखकर हर किसी की रूह कांप उठी थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं उस प्रलय की जिसने लाखों जिंदगियों को मौत के घाट उतार दिया। हम उसी प्रलय की बात कर रहे हैं जो उत्तराखंड में 2013 में आई थी। जिसमें सबसे ज्यादा क्षति केदारधाम में हुई थी।
भगवान के दर्शन के लिए लोग खुशी-खुशी आते हैं, लेकिन तबाही का वो वक्त भक्तों के लिए ऐसे मुसीबत बना कि लोगों का भगवान पर विश्वास तक उठ गया। केदारनाथ में भयानक बाढ़ आने से वहां का चप्पा-चप्पा गंगा की गोद में समा गया था। लेकिन इन सभी में सबसे चौकाने वालीं बात रहीं केदारनाथ मंदिर की... क्योंकि इतनी बड़ी आपदा आने के बाद भी मंदिर को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ था। आपको बता दें कि वह तबाही ऐसी तबाही थी। जिसे भूल पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। प्रकृति का ऐसा रूप देखकर.... अंदाजा लगाया जा सकता था कि अब कुछ नहीं बचेगा लेकिन फिर भी भोलेनाथ का केदारनाथ मंदिर को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं हुआ...इन सभी के बाद लोगों का भोलेनाथ की इस मंदिर के प्रति ओर विश्वास तेज हो गया। चलिए तो आज हम आपको केदारनाथ मंदिर के बारे में बताते हुए कि शक्तियां और चमत्कार को आपके साथ साझा करेंगे।
भगवान शंकर का यह मंदिर गिरिजा हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है।. भगवान भोलेनाथ के सबसे पहले केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग में आता है। पवित्र स्थल तीनो तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। जिसकी तीनो तरफ ऊंचे-ऊंचे पर्वत है। एक तरफ 22000 फुट का ऊंचा केदारनाथ तो दूसरी तरफ 21000 फुट का खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22000 भरतकुंड पर्वत मौजूद है।
केदारनाथ मंदिर इतना विशाल है कि यह 85 फुट ऊंचा 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। इसकी मजबूत दीवारें पर्वत से बनाई गई है। पहाड़ों में मंदिर का बनना अपने आप में एक आश्चर्यजनक बात है... इसलिए ये मंदिर विश्वास और भक्ति का प्रतीक होते हैं। वरना जहां पर्वतों का गिरना कभी कम नहीं होता वहां मंदिर का होना शक्ति का ही उदाहरण है।
मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा इसकी दीवारों से ही लगाया जा सकता है। माना जाता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है और तभी से ही लगातार यहां पर तीर्थ यात्रा जारी है। ग्रंथो में कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण पर्वत पर तपस्या करते थे। भगवान शंकर का दर्शन करना ही उनका लक्ष्य था। उनके कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। जिसके बाद उन्हें वर मांगने के लिए बोला गया तो उन्होंने पिंडी रूप में शिव को वहां रहने ही प्रार्थना की। तब से ही भगवान ने नर और नारायण ऋषि की इच्छा को पूरा करते हुए ज्योतिर्लिंग में निवास किया। मंदिर का निर्माण महाभारत के समय कराया गया। जिसके बाद कई तथ्य सामने आए कि मंदिर सालों बाद लुप्त हो गया और उसके पश्चात् आदि शंकराचार्य ने मंदिर का निर्माण कराया... लेकिन कई साल तक इस पर्वत पर बर्फ होने के कारण मंदिर ढका रहा और 12वीं और 13वीं सदीं में राहुल सांकृत्यायन ने मंदिर के प्रमाण दिया और यात्रा शुरू की गई।
पहाड़ों में जितने भी मंदिर होते हैं मौसम के चलते उन्हें खुलने और बंद करने का समय निर्धारित कर दिया जाता है। यात्रा लाखों भक्त जन हर वर्ष करते हैं। कितनी भी तबाही और आपदा आ जाए लेकिन जिनका भगवान शंकर के प्रति विश्वास है, वो कभी कम नहीं होता और भगवान शंकर अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। जहां तक मंदिर के कपाट खुलने के समय की बात है। तो आपको बता दें कि सर्दियों के चलते है, 6 महीने के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है, और दिवाली पर कपाट बंद होने के बाद अप्रैल और मई के समय में फिर से मंदिर का रास्ता श्रृद्धालुओं के खोल दिया जाता है।
जानिए केदारनाथ धाम के सही दर्शन करने का तरीका हमारे जाने माने ज्योतिषयों से
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