>

जमात उल विदा - अमन और ख़ुशहाली का पवित्र त्यौहार

जमात उल विदा - रमजान महीने का आखरी दिन

आइये जानते हैं इस वर्ष कब है जमात उल विदा और क्यों इस पर्व को इतने उल्लास के साथ मनाया जाता है। जमात उल विदा मुस्लिम पवित्र महीने रमज़ान के अंतिम जुमे के दिन को कहा जाता हैं। हालांकि रमज़ान का पूरा महीना रोज़ों के कारण अपना महत्व रखता है और जुमे के दिन का विशेष रूप से दोपहर के समय नमाज़ के कारण काफी विशेष है, पर सप्ताह का यह दिन रमजान के इस पवित्र महीने के अन्त में आ रहा होता है, इसलिए लोग इसे अति-महत्वपूर्ण मानते हैं।

रमजान के आख़िरी जुमे के मौक़े पर मस्जिदों में दोपहर को जुमातुल विदा की नमाज़ अदा की जाती है। इस विशेष नमाज़ से पहले मस्जिदों के पेश इमाम जुमातुल-विदा का ख़ुत़्बा पढ़ते हैं और नमाज़ के बाद अमन और ख़ुशहाली की दुआएँ माँगी जाती हैं भारत में अधिकतर दरगाहों से जुड़ी कई एक मस्जिदें हैं, इसलिए लोग वहाँ पर भी नमाज़ पढ़ते हैं। इनमें सबसे खास है दिल्ली का जामा मस्जिद जहाँ हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं रमजान के आखिरी जुम्मे का नमाज़ अदा करने।

जमात-उल-विदा - मुस्लिम समुदाय का खास दिन

मुस्लिम समुदाय में जमात-उल-विदा एक खास दिन है। पाक महीने के आखिरी शुक्रवार यानि जुमें के दिन काफी भीड़ होती है। सभी रोजेदार मिलकर खुदा को याद करते हैं। ऐसे धार्मिक सभा का जिक्र कुरान के 62 वें अध्याय में भी देखने को मिलता है।

रमजान के महीने के दौरान कई लोग पांच वक्त की नमाज तो पढ़ते ही हैं, लेकिन आखिरी जुमें को खास तौर पर नमाज अदा की जाती है। इसमें नमाजी अल्लाह को याद करते हैं और अपने किए हुए बुरे काम को माफ करने की फरियाद करते हैं। इस दौरान सभी नमाजी अपने दोनों हाथों को उठाते हुए अल्लाह-हू-अकबर बोलते हैं।

जमात उल विदा - खुशियों का त्यौहार

इस वर्ष यह पावन त्योहार 31 मई को होने जा रहा है और रमजान के आखिरी जुमें पर ज्यादातर रोजेदार नए कपड़े पहने हुए देखे जा सकते हैं। वे पारंपरिक वेशभूषा में होंगे हैं। नमाज के दौरान वे सिर पर गोल टोपी भी पहनते हैं। सुबह नमाज में शरीक होने से पहले वे घर पर भी कुरान पढ़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि जमात-उल-विदा के दिन जो लोग नमाज पढ़कर अल्लाह की इबादत करेंगे और अपना पूरा दिन मस्जिद में बितायेगें, उन्हें अल्लाह की विशेष रहमत और बरकत प्राप्त होगी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह अपने एक फरिश्ते को मस्जिद में भेजता है, जोकि लोगों की नमाज को सुनता है और उन्हें मनचाहा आशीर्वाद देता है। एक और मान्यता यह भी है कि इस पर्व को लेकर कि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी।

जमात उल विदा - भाईचारे का पवित्र त्यौहार

यही कारण है कि इस शुक्रवार को बाकी के जुमे के दिनों से ज्यादे महत्वपूर्ण बताया गया है। पर इन सबसे उपर जमात उल विदा भाईचारे का प्रतीक एवं पर्व है। महीने भर संयम से रोजा रखने के बाद लोग इस दिन को एक दूसरे के साथ मिलकर खुशियों से मनाते हैं। शायद इसलिए कहा जाता है कि खुशियाँ बांटने से बढती है और दुख बांटने से कम होता है।

 

 

 

 

 

 


Recently Added Articles
काल सर्प दोष:- एक विस्तृत अध्ययन
काल सर्प दोष:- एक विस्तृत अध्ययन

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में काल सर्प दोष एक महत्वपूर्ण और चर्चित विषय है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार की बाधाओं...

प्यार, पैसा, व्यापार, स्वास्थ्य:- के 24 महाउपाय
प्यार, पैसा, व्यापार, स्वास्थ्य:- के 24 महाउपाय

2024 एक नया साल है और इसके साथ नई उम्मीदें और चुनौतियां भी आती हैं...

भारतीय सप्तऋषियों की कहानी
भारतीय सप्तऋषियों की कहानी

भारत की प्राचीन पौराणिक कथाओं में सप्तऋषियों का विशेष महत्व है। सप्तऋषि सात महान ऋषियों का समूह है...

दक्षिण भारतीय सिनेमा के स्टाइलिश स्टार: अल्लू अर्जुन
दक्षिण भारतीय सिनेमा के स्टाइलिश स्टार: अल्लू अर्जुन

अल्लू अर्जुन का जन्म 8 अप्रैल 1983 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता, अल्लू अरविंद, तेलुगु फिल्म उद्योग के एक प्रसिद्ध निर्माता हैं। अल्लू अर्...