दोस्तों आपने भारत में ऐसी बहुत सी मूर्तियां देखी होगी जो आपको कहीं ना कहीं आश्चर्य में डालने का कमा करती है और कहीं ना हमें लगता है कि भारत में श्रृद्धा-भक्ति और भाव की कमी नहीं है। दरअसल हर धर्म के लोग अपने- अपने तरीके से भगवान के रुप को पूजती है। जिसके पीछें न जानें कितने पैसों को खर्च करकें मूर्ति और मंदिरों का निर्माण करते है। कुछ इनमें इतने प्रसिद्ध होते है कि विश्व में विख्यात हो जाते है। चलिए एक ऐसी भगवान की मूर्ति के बारें आपको जानकारी देते है जिसका मंदिर और मूर्ति सबसे अलग और लोगों को आश्चर्य में डालने वाली है।
बात उस गोमतेश्वर मंदिर की है, जो कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में स्थित है। आपको बता दे कि यह गोम्मतेश्वर मंदिर कर्नाटक के मैसूर के श्रवणबेलगोला में स्थित जो बड़ा ही पवित्र स्थान माना जाता है। जिसके पवित्र होने का कारण है क्योंकि यहां पर गोम्मतेश्वर या बाहुबलि स्तंभ है। बाहुबलि मोक्ष प्राप्त करने वाले पहले तीर्थंकर थे।
यहां पर पर्यटकों को गोमतेश्वर मूर्ति सबसे अधिक पसंद आती है। आपको बता दें कि यह मूर्ति 17 मीटर ऊंची है और विश्वभर में एक पत्थर से निर्मित सबसे विशाल मूर्ति है। इसके मूर्ति के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि गंग वंश के राजा राजमल्ल और उसके सेनापति चामुंडा राय ने बनवाई थी।
यहीं गोमतेश्वर की सबसे बड़ी खासियत है कि यह एक ही पत्थर से बनी है। भगवान गोमतेश्वर की मूर्ति फाल्गुनी नदी के तट पर विराजमान है। जो 35 फीट ऊंची एक प्रस्तर प्रतिमा 4 बाहुबली मूर्तियों में सबसे छोटी है। आपको बता दें कि अन्य मूर्तियां कर्कला, धर्मस्थल, श्रवणबेलगोला पर स्थित है।
श्रवणबेलगोला दक्षिण भारत में सबसे प्रसिद्ध जैन तीर्थ मंदिर है। यह जगह कर्नाटक की प्रसिद्ध विरासत स्थलों में से एक मानी जाती है जहां पर भगवान गोमतेश्वर की मूर्ति विराजित है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, गोमतेश्वर प्रथम जैन आदिनाथ के तीर्थकर के दूसरे पुत्र थे। ऐसा कहा जाता है कि आदिनाथ के पास कुल 100 बेटियां थी। जब ऋषभदेव ने अपना राज्य छोड़ा तो साम्राज्य के लिए दोनों पुत्रों भरत और बाहुबली के बीच झगड़ा शुरू हो गया। जिसमें बाहुबली ने जीत हासिल की और उन्होंने अपना राज्य जीतने के बावजूद भी राज्य को छोटे भरत को देने का फैसला किया और खुद संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने प्रदेश से दूर चला गए।
इस मूर्ति की मान्यता है कि इस मूर्ति में शक्ति, बल और उदारवादी भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन है। मूर्ति का अभिषेक विशेष महामात्काभिषेक पर्व पर होता है। भगवान के पर्व का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और हर 12 वर्ष श्रावणबेलागोला पहाड़ी में हजारों भक्त पर्यटक उत्सव को हर्ष के सात मानते है। जिसमें कई टन दूध, गन्ने का रस और केसर के फूल से मूर्ति का अभिषेक किया जाता है। दुनिया की सबसे ऊंची एक आश्रम मूर्ति को केसर, दही, दूध और सोने के सिक्कों से भी निहयाला जाता है। आपको बता दें कि 12 वर्ष में इस उत्सव को मनाया जाता है, जिसमें जैन धर्म के लोग बड़े ही उत्साह से भाग लेते हैं और अपनी भक्ति से भगवान को प्रसन्न करते हैं।
गोमतेश्वर मंदिर का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करे।
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